वेदसार स्तोत्र
Vedasara Stotra in Hindi
जब मौन को शब्द चाहिए, वह स्तोत्र बन जाता है। वेदसार स्तोत्र, आदि शंकराचार्य द्वारा रचित एक दिव्य स्तुति है, जो वेदों का सार लेकर शिव के चरणों में समर्पित की गई है। यह स्तोत्र केवल शब्दों का संग्रह नहीं, बल्कि आत्मा और ब्रह्म के अद्वैत का सजीव अनुभव है।
हर श्लोक आत्मा के गहराइयों में उतरता है, और शिव के निराकार स्वरूप से एकाकार होने का मार्ग दिखाता है। यह स्तोत्र भक्ति, ज्ञान और मोक्ष की त्रिवेणी है, जहाँ शब्द मौन में विलीन हो जाते हैं।
लाभ
- गहन शांति की अनुभूति
- अहंकार का क्षय
- आत्मज्ञान की प्राप्ति
- भक्ति का जागरण
महत्वपूर्ण निर्देश
इस स्तोत्र/ नामावली का लाभ कैसे प्राप्त करें
इस स्तोत्र/नामावली की कृपा को पूर्ण रूप से प्राप्त करने के लिए दो विधियाँ हैं:
पहली विधि: संकल्प के साथ साधना
इस साधना की शुरुआत एक संकल्प से होती है , एक सच्चे हृदय से लिया गया संकल्प या उद्देश्य। तय करें कि आप कितने दिनों तक इस स्तोत्र का पाठ नियमित रूप से करेंगे: 7, 9, 11, 21, 40 या कोई भी संख्या जो आपके लक्ष्य के साथ आध्यात्मिक रूप से जुड़ी हो।
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आपका संकल्प निम्नलिखित में से किसी एक या अधिक उद्देश्य के लिए हो सकता है:
- आर्थिक स्थिरता
- एक संतोषजनक नौकरी
- शांति और स्वास्थ्य
- किसी प्रियजन की भलाई
- आध्यात्मिक विकास
- विवाह
- दिव्य कृपा और सुरक्षा
- या कोई अन्य शुभ और सकारात्मक इच्छा
ध्यान रहे कि आपकी इच्छा सच्ची और सकारात्मक होनी चाहिए, किसी भी प्रकार की हानि या नकारात्मकता से रहित।
दैनिक पाठ का संकल्प
तय करें कि आप प्रतिदिन इस स्तोत्र/नामावली का कितनी बार पाठ करेंगे: 3, 5, 7, 11, 21 या उससे अधिक, आपकी श्रद्धा और सामर्थ्य के अनुसार। यदि आप किसी दिन पाठ करना भूल जाते हैं, तो आपकी साधना भंग हो जाती है, और आपको पहले दिन से पुनः आरंभ करना होगा। यह अनुशासन आपकी आध्यात्मिक दृढ़ता को मजबूत करता है।
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दूसरी विधि : भक्ति की सीमाओं से परे साधना
दूसरी विधि यह है कि आप इस स्तोत्र/नामावली का पाठ केवल भक्ति भाव से करें, बिना किसी समयबद्ध संकल्प के। इस स्थिति में, हृदय ही मंदिर बन जाता है, और सच्चाई ही आपकी अर्पण होती है।
साधना के फल किन बातों पर निर्भर करते हैं
आपकी साधना के परिणाम निम्नलिखित बातों पर निर्भर करते हैं:
- प्रतिदिन के पाठ की संख्या
- कुल साधना की अवधि (दिनों की संख्या)
- आपकी एकाग्रता और भक्ति की गहराई
आप अपनी साधना की ऊर्जा को निम्नलिखित आध्यात्मिक अनुशासनों से और अधिक प्रभावशाली बना सकते हैं (ये अनिवार्य नहीं हैं, केवल अनुशंसित हैं):
- मांसाहार से परहेज़
- प्याज और लहसुन का त्याग
- प्रतिदिन एक ही समय पर पाठ करना
- इंद्रिय सुखों और ध्यान भटकाने वाली चीजों से दूरी
जितनी अधिक कठिन और केंद्रित आपकी साधना होगी, उतने ही गहरे और चमत्कारी होंगे उसके परिणाम।
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वेदसार स्तोत्र आरंभ होता है

गजेन्द्रस्य कृत्तिं वसानं वरेण्यम्
सभी प्राणियों के स्वामी, पापों का नाश करने वाले परमेश्वर
गजेन्द्र की खाल धारण करने वाले, श्रेष्ठ देव
जटाजूटमध्ये स्फुरद्गाङ्गवारिं
महादेवमेकं स्मरामि स्मरारिम्
जटाजूट के बीच में चमकती गंगा जल रखने वाले
महादेव स्मरणीय हैं, जो कामदेव के शत्रु हैं
विभुं विश्वनाथं विभूत्यङ्गभूषम्
महेश्वर, देवताओं के स्वामी, दानवों के संहारक
सर्वव्यापी, जगत के नाथ, विभूतियों से सुशोभित
विरूपाक्षमिन्द्वर्कवह्नित्रिनेत्रं
सदानन्दमीडे प्रभुं पञ्चवक्त्रम्
विरूपाक्ष, चंद्र, सूर्य और अग्नि जिनकी तीनों आंखें हैं
सदा आनंद देने वाले पंचवक्त्र प्रभु की वंदना करता हूँ
गवेन्द्राधिरूढं गुणातीतरूपम्
गिरिराज कैलास के स्वामी, गणेश के पिता, जिनका कंठ नीला है
नंदी पर सवारी करने वाले, गुणों से परे जिनकी रूप है
भवं भास्वरं भस्मना भूषिताङ्गं
भवानीकलत्रं भजे पञ्चवक्त्रम्
संसार स्वरूप, तेजस्वी, चिता-भस्म से अंगों को सजाने वाले
भवानी के पति, पंचमुखी शिव की मैं वंदना करता हूँ
महेशान शूलिञ्जटाजूटधारिन्
शिव की कृपा से प्रिय, शंभु, चंद्र के अर्ध-मोले वाले
महेश्वर, जो शूल को लेकर जटाजूट धारण करते हैं
त्वमेको जगद्व्यापको विश्वरूपः
प्रसीद प्रसीद प्रभो पूर्णरूप
तुम एकमात्र हो जो सम्पूर्ण जगत में व्याप्त हो
हे प्रभु! कृपाबल से प्रसन्न हो और पूर्ण रूप स्वरूप हो
निरीहं निराकारमोंकारवेद्यम्
सर्वश्रेष्ठ परमात्मा, जगत का मूल बीज
निर्दोष और निराकार, जो ‘ॐ’ में वेदनिय है
यतो जायते पाल्यते येन विश्वं
तमीशं भजे लीयते यत्र विश्वम्
जिससे यह सारा विश्व उत्पन्न होता है और पीढ़ा जाता है
जिसके द्वारा सब कुछ आत्मसात होता है, उसी तमीश को मैं भजता हूँ
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र्न चाकाशमास्ते न तन्द्रा न निद्रा
न तो भूमि है, न जल, न अग्नि, न वायु
न ही आकाश है, न तंद्रा है, न निद्रा है
न गृष्मो न शीतं न देशो न वेषो
न यस्यास्ति मूर्तिस्त्रिमूर्तिं तमीडे
न ही गर्मी या ठंडक है, न कोई दिशा या वस्त्र है
जिसकी कोई मूर्ति न होकर तीन मूर्तियों से परे है, उस तमीश को मैं पूजता हूँ
शिवं केवलं भासकं भासकानाम्
जो अजन्मा है, शाश्वत है, सभी कारणों का कारण है
शिव है, केवल एक है, प्रकाशकों का प्रकाशक है
तुरीयं तमःपारमाद्यन्तहीनं
प्रपद्ये परं पावनं द्वैतहीनम्
चतुर्थ अवस्था (तुरीय), तमस (अज्ञान) से परे है, न आरंभ न अंत है
मैं उस परम पवित्र और द्वैत-रहित को शरण में लेता हूँ
नमस्ते नमस्ते चिदानन्दमूर्ते
नमस्कार, हे विभु, जो संसार के रूप हैं
नमस्कार, हे चिदानंद की मूर्ति
नमस्ते नमस्ते तपोयोगगम्य
नमस्ते नमस्ते श्रुतिज्ञानगम्य
नमस्कार, हे तप और योग से प्राप्त होने वाले
नमस्कार, हे शास्त्र ज्ञान से प्राप्त होने वाले
महादेव शंभो महेश त्रिनेत्र
हे प्रभु, शूलधारी, विभू, विश्वनाथ
महादेव, शंभु, त्रिनेत्रधारी
शिवाकान्त शान्त स्मरारे पुरारे
त्वदन्यो वरेण्यो न मान्यो न गण्यः
शिवाकांत, शांतिदायक, पिशाचों और पुरांडरो के संहारक
आपसे बढ़कर कोई श्रेष्ठ नहीं, न कोई माना जाता है, न ही गिना जाता है
गौरीपते पशुपते पशुपाशनाशिन्
शंभु, महेश्वर, करुणामय, त्रिशूलधारी
गौरी के पति, पशुओं के स्वामी, पशुपाशों के नाशक
काशीपते करुणया जगदेतदेक-
त्वंहंसि पासि विदधासि महेश्वरोऽसि
काशी के स्वामी, करुणा से भरे, जो जगत का एकमात्र आधार हैं
तुम हंस की तरह प्यारे, सभी को पास लेकर रखने वाले, महेश्वर हो
त्वय्येव तिष्ठति जगन्मृड विश्वनाथ
हे देव! हे भव! हे स्मरारे!
तुमसे यह सम्पूर्ण जगत् उत्पन्न होता है और स्थिर रहता है, हे विश्वनाथ!
त्वय्येव गच्छति लयं जगदेतदीश
लिङ्गात्मके हर चराचरविश्वरूपिन्
तुम ही इस जगत का अंत हो, हे जगदेत (जगत के अधिशासी),
हे लिंगस्वरूप, हर, जो चराचर (जड़ और चेतन) का विश्व रूप हो।



