"Ultra-realistic cinematic 8K surreal landscape featuring a glowing crystal lotus floating above liquid gold ocean, with radiant light streams symbolizing divine blessings inspired by the siddha laxmi stotra

सिद्ध लक्ष्मी स्तोत्र: समृद्धि का सिद्ध मंत्र

सिद्धिलक्ष्मीस्तोत्रम्

  • धन और वैभव की प्राप्ति
  • सिद्धियों की प्राप्ति
  • कर्ज और आर्थिक बाधाओं से मुक्ति
  • नकारात्मक ऊर्जा से सुरक्षा
  • आकर्षण और सौंदर्य में वृद्धि
  • परिवार में सुख-शांति और समृद्धि

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इस स्तोत्र का लाभ कैसे लें

इस स्तोत्र से सच्चे लाभ पाने के लिए सबसे पहले एक संकल्प लें—एक सच्चे मन से किया गया व्रत या इरादा। तय करें कि आप कितने दिनों तक इसका पाठ करेंगे: 7, 9, 11, 21, 40 या कोई भी संख्या जो आपके उद्देश्य से मेल खाती हो।

आपका संकल्प किसी भी शुभ उद्देश्य के लिए हो सकता है:

  • आर्थिक स्थिरता
  • मनचाही नौकरी
  • शांति और स्वास्थ्य
  • परिवार के किसी सदस्य की भलाई
  • आध्यात्मिक उन्नति
  • विवाह
  • देवी की कृपा
  • या कोई अन्य सकारात्मक इच्छा जो आपके मन में हो
  • ध्यान रहे: संकल्प सच्चा और शुभ होना चाहिए, किसी नकारात्मक भावना से प्रेरित नहीं।

दैनिक पाठ की प्रतिबद्धता

तय करें कि आप प्रतिदिन कितनी बार स्तोत्र का पाठ करेंगे: 3, 5, 7, 11, 21 या जितना आप श्रद्धा से कर सकें।

यदि किसी दिन पाठ छूट जाए, तो आपकी साधना भंग मानी जाएगी और आपको फिर से पहले दिन से शुरुआत करनी होगी। यही अनुशासन आपकी आत्मिक शक्ति को मजबूत करता है।

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भक्ति बिना बंधन के

आप चाहें तो इस स्तोत्र का पाठ केवल भक्ति भाव से भी कर सकते हैं—बिना किसी समय या संख्या की सीमा के। ऐसे में हृदय ही मंदिर बन जाता है और श्रद्धा ही अर्पण

फल प्राप्ति को प्रभावित करने वाले तत्व

आपकी साधना के परिणाम इन बातों पर निर्भर करते हैं:

  • प्रतिदिन कितनी बार पाठ किया गया
  • कुल कितने दिनों तक साधना की गई
  • आपकी एकाग्रता और श्रद्धा की गहराई

आप अपनी साधना को और प्रभावशाली बना सकते हैं यदि आप कुछ आध्यात्मिक नियमों का पालन करें (ये आवश्यक नहीं, लेकिन लाभकारी हैं):

  • मांसाहार से परहेज़
  • प्याज और लहसुन का त्याग
  • रोज़ एक ही समय पर पाठ करना
  • इंद्रिय सुखों से दूर रहना
  • जितनी कठिन और एकाग्र आपकी साधना होगी, उतने ही गहरे और शुभ परिणाम आपको मिलेंगे।

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श्री गणेशाय नमः ।
ॐ अस्य श्रीसिद्धिलक्ष्मीस्तोत्रस्य हिरण्यगर्भ ऋषिः,
अनुष्टुप् छन्दः, सिद्धिलक्ष्मीर्देवता, मम समस्त
दुःखक्लेशपीडादारिद्र्यविनाशार्थं
सर्वलक्ष्मीप्रसन्नकरणार्थं
महाकालीमहालक्ष्मीमहासरस्वतीदेवताप्रीत्यर्थं च
सिद्धिलक्ष्मीस्तोत्रजपे विनियोगः ।

Hindi meaning:

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Siddha Laxmi Stotra Begins

Radiant golden lotus surrounded by glowing orbs and Sanskrit light streams, symbolizing cosmic harmony and divine energy of Siddha Laxmi Stotra.

ब्राह्मीं च वैष्णवीं भद्रां षड्भुजां च चतुर्मुखाम् ।
त्रिनेत्रां च त्रिशूलां च पद्मचक्रगदाधराम् ॥ १॥

अर्थ:
देवी सिद्धिलक्ष्मी ब्रह्मी, वैष्णवी और भद्रा स्वरूपिणी हैं। वे छह भुजाओं और चार मुखों वाली हैं, तीन नेत्रों से युक्त हैं। और अपने हाथों में त्रिशूल, पद्म, चक्र और गदा धारण करती हैं।

पीताम्बरधरां देवीं नानालङ्कारभूषिताम् ।
तेजःपुञ्जधरां श्रेष्ठां ध्यायेद्बालकुमारिकाम् ॥ २॥

अर्थ:
वह देवी पीताम्बर (पीले वस्त्र) धारण किए हुए हैं। अनेक प्रकार के अलंकारों से सुसज्जित हैं और तेजस्विता से पूर्ण हैं। साधक को उन्हें बालकुमारी स्वरूप में ध्यान करना चाहिए।

ॐकारलक्ष्मीरूपेण विष्णोर्हृदयमव्ययम् ।
विष्णुमानन्दमध्यस्थं ह्रींकारबीजरूपिणी ॥ ३॥

अर्थ:
देवी ॐकाररूपिणी लक्ष्मी हैं, वे विष्णु के शाश्वत हृदय में स्थित हैं। वे विष्णु के आनंदस्वरूप मध्य में विराजमान हैं और ह्रीं बीज मंत्र की मूर्ति हैं।

ॐ क्लीं अमृतानन्दभद्रे सद्य आनन्ददायिनी ।
ॐ श्रीं दैत्यभक्षरदां शक्तिमालिनी शत्रुमर्दिनी ॥ ४॥

अर्थ:
हे अमृतानन्द स्वरूपिणी भद्रे! आप तुरंत ही आनंद देने वाली हैं। हे देवी सिद्धिलक्ष्मी! आप दैत्य संहारिणी, शक्तिमालिनी रूपिणी और शत्रुओं का नाश करने वाली हैं।

तेजःप्रकाशिनी देवी वरदा शुभकारिणी ।
ब्राह्मी च वैष्णवी भद्रा कालिका रक्तशाम्भवी ॥ ५॥

अर्थ:
आप सदा तेज प्रकाशित करने वाली देवी हैं, वर प्रदान करने वाली और मंगल प्रदान करने वाली हैं। आप ब्राह्मी, वैष्णवी, भद्रा, कालिका और रक्त-शाम्भवी स्वरूप धारण करके विश्व की रक्षा करती हैं।

आकारब्रह्मरूपेण ॐकारं विष्णुमव्ययम् ।
सिद्धिलक्ष्मि परालक्ष्मि लक्ष्यलक्ष्मि नमोऽस्तुते

अर्थ:
आप आकार-ब्रह्मरूप हैं और ॐकार के रूप में अविनाशी विष्णु में स्थित हैं। हे सिद्धिलक्ष्मी! आप परा-लक्ष्मी और लक्ष्य-लक्ष्मी स्वरूपा हैं, आपको मेरा प्रणाम है।

सूर्यकोटिप्रतीकाशं चन्द्रकोटिसमप्रभम् ।
तन्मध्ये निकरे सूक्ष्मं ब्रह्मरूपव्यवस्थितम् ॥ ७॥

अर्थ:
देवी का स्वरूप कोटि सूर्यों के समान प्रकाशमान और कोटि चन्द्रमाओं के समान शीतल प्रभा से युक्त है। उस दिव्य प्रकाश-पुंज के मध्य में वे सूक्ष्म ब्रह्मस्वरूप रूप से विराजमान हैं।

ॐकारपरमानन्दं क्रियते सुखसम्पदा ।
सर्वमङ्गलमाङ्गल्ये शिवे सर्वार्थसाधिके ॥ ८॥

अर्थ:
वे देवी साक्षात ॐकार स्वरूप परमानन्द हैं, जो सुख और सम्पत्ति प्रदान करती हैं। हे सर्वमंगल-स्वरूपिणी शिवे! आप सभी कार्यों की सिद्धि कराने वाली और सच्चे कल्याण की दात्री हैं।

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प्रथमे त्र्यम्बका गौरी द्वितीये वैष्णवी तथा ।
तृतीये कमला प्रोक्ता चतुर्थे सुरसुन्दरी ॥

अर्थ:
पहले स्थान पर देवी त्र्यम्बका गौरी, दूसरे में वैष्णवी, तीसरे में कमला, और चौथे स्थान पर सुरसुन्दरी कही गई हैं।

पञ्चमे विष्णुपत्नी च षष्ठे च वैष्णवी तथा ।
सप्तमे च वरारोहा अष्टमे वरदायिनी ॥

अर्थ:
पाँचवें रूप में देवी विष्णुपत्नी कही जाती हैं, छठे में वे वैष्णवी हैं, सातवें रूप में वरारोहा (अत्यंत शोभा से युक्त), और आठवें रूप में वे वरदायिनी (वरदान देने वाली) कही जाती हैं।

नवमे खड्गत्रिशूला दशमे देवदेवता ।
एकादशे सिद्धिलक्ष्मीर्द्वादशे ललितात्मिका ॥ ११॥

अर्थ:
नवें रूप में वे खड्ग-त्रिशूलधारिणी हैं, दसवें में देवदेवता, ग्यारहवें में सिद्धिलक्ष्मी, और बारहवें रूप में वे ललितात्मिका कहलाती हैं।

एतत्स्तोत्रं पठन्तस्त्वां स्तुवन्ति भुवि मानवाः ।
सर्वोपद्रवमुक्तास्ते नात्र कार्या विचारणा ॥

अर्थ:
जो मनुष्य इस स्तोत्र का पाठ करके देवी की स्तुति करते हैं, वे सभी उपद्रवों और कष्टों से मुक्त हो जाते हैं। इसमें किसी प्रकार का संशय (विचार) करने की आवश्यकता नहीं है।

एकमासं द्विमासं वा त्रिमासं च चतुर्थकम् ।
पञ्चमासं च षण्मासं त्रिकालं यः पठेन्नरः ॥ १३॥

अर्थ:
जो मनुष्य इस स्तोत्र का एक माह, दो माह, तीन माह, चार माह, पाँच माह अथवा छह माह तक, प्रतिदिन त्रिकाल (प्रातः, मध्याह्न, सायंकाल) पाठ करता है—

ब्राह्मणाः क्लेशतो दुःखदरिद्रा भयपीडिताः ।
जन्मान्तरसहस्रेषु मुच्यन्ते सर्वक्लेशतः ॥ १४॥

अर्थ:
ऐसे ब्राह्मण अथवा साधक जो दुख, दरिद्रता और भय से पीड़ित हैं, वे अनगिनत जन्म-जन्मांतरों के संचित सभी क्लेशों से मुक्त हो जाते हैं।
फल श्रुति

अलक्ष्मीर्लभते लक्ष्मीमपुत्रः पुत्रमुत्तमम् ।
धन्यं यशस्यमायुष्यं वह्निचौरभयेषु च ॥

अर्थ:
जिसके पास लक्ष्मी नहीं है उसे लक्ष्मी प्राप्त होती है, जिसके पुत्र नहीं है उसे श्रेष्ठ पुत्र मिलता है। साथ ही वह धन, कीर्ति, दीर्घायु प्राप्त करता है और अग्नि तथा चोर (चोरी) आदि के भय से भी उसकी रक्षा होती है।

शाकिनीभूतवेतालसर्वव्याधिनिपातके ।
राजद्वारे महाघोरे सङ्ग्रामे रिपुसङ्कटे ॥

अर्थ:
यह स्तोत्र शाकिनी, भूत, वेताल जैसे दुष्ट प्रेतों से रक्षा करता है और सभी प्रकार की व्याधियों को नष्ट करता है। राजमहल के दुर्गम द्वारों पर, भयंकर युद्धभूमि में अथवा शत्रु-संकट में भी यह साधक की रक्षा करता है।

सभाास्थाने श्मशाने च कारागेहारिबन्धने ।
अशेषभयसम्प्राप्तौ सिद्धिलक्ष्मीं जपेन्नरः ॥ १७॥

अर्थ:
सभा-स्थान में, श्मशान में, कारागार में बंधन में या जब कोई अनगिनत भय सामने हों, तब साधक यदि सिद्धिलक्ष्मी का जप करता है तो वह सभी संकटों से मुक्त हो जाता है।

ईश्वरेण कृतं स्तोत्रं प्राणिनां हितकारणम् ।
स्तुवन्ति ब्राह्मणा नित्यं दारिद्र्यं न च वर्धते

अर्थ:
यह स्तोत्र स्वयं ईश्वर द्वारा रचित है और प्राणियों के हित के लिए है। जो ब्राह्मण अथवा साधक इसका नित्य पाठ करते हैं, उनके जीवन में दारिद्र्य का वर्धन कभी नहीं होता।

या श्रीः पद्मवने कदम्बशिखरे राजगृहे कुञ्जरे
श्वेते चाश्वयुते वृषे च युगले यज्ञे च यूपस्थिते ।
शङ्खे देवकुले नरेन्द्रभवनी गङ्गातटे गोकुले
सा श्रीस्तिष्ठतु सर्वदा मम गृहे भूयात्सदा निश्चला ॥ १९॥

अर्थ:
जो श्री देवी कमलवन में निवास करती हैं, कदम्ब वृक्ष की शाखाओं पर, राजमहल में, हाथी पर, श्वेत अश्वों की जोड़ी, वृषभ, यज्ञ के यूपस्तम्भ, शंख, देवालय, राजमहल, गंगातट और गोकुल में विराजमान रहती हैं — वही श्री देवी मेरे घर में भी सदैव स्थित रहें और अचल होकर अपनी कृपा प्रदान करें।

॥ इति श्रीब्रह्माण्डपुराणे ईश्वरविष्णुसंवादे दारिद्र्यनाशनं सिद्धिलक्ष्मीस्तोत्रं सम्पूर्णम् ॥

अर्थ:
इस प्रकार ब्रह्माण्डपुराण में ईश्वर और विष्णु के संवाद में वर्णित दारिद्र्य का नाश करनेवाला सिद्धिलक्ष्मीस्तोत्र पूर्ण हुआ।

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