Divine visualization of batuk bhairav bramha kavach hindi—golden-clad deity radiates protective energy atop a sacred mandala, surrounded by ancient temples and snow-capped peaks, symbolizing spiritual armor and cosmic guardianship.”

Batuk Bhairav Bramha Kavach Hindi: बटुक भैरव ब्रह्म कवच, दिव्य सुरक्षा का रहस्यमय कवच

बटुक भैरव ब्रह्म कवच (this post is for batuk bhairav bramha kavach hindi) एक दिव्य सुरक्षा कवच है, जिसे स्वयं भगवान शिव ने प्रकट किया। यह कवच बटुक भैरव की बाल रूप शक्ति को जागृत करता है, जो साधक को हर दिशा से रक्षा प्रदान करता है और तांत्रिक साधना में अद्भुत ऊर्जा देता है।

लाभ:

  • नकारात्मक ऊर्जा, तंत्र बाधा और भय से रक्षा
  • आत्मबल और आध्यात्मिक स्पष्टता में वृद्धि
  • मंत्र सिद्धि और तांत्रिक साधना को बल प्रदान करता है
  • शरीर, मन और आभा मंडल में सुरक्षा ऊर्जा का संचार

महत्वपूर्ण निर्देश

इस स्तोत्र/ नामावली  का लाभ कैसे प्राप्त करें

इस स्तोत्र/नामावली की कृपा को पूर्ण रूप से प्राप्त करने के लिए दो विधियाँ हैं:

पहली विधि: संकल्प के साथ साधना

इस साधना की शुरुआत एक संकल्प से होती है , एक सच्चे हृदय से लिया गया संकल्प या उद्देश्य। तय करें कि आप कितने दिनों तक इस स्तोत्र का पाठ नियमित रूप से करेंगे: 7, 9, 11, 21, 40 या कोई भी संख्या जो आपके लक्ष्य के साथ आध्यात्मिक रूप से जुड़ी हो।

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आपका संकल्प निम्नलिखित में से किसी एक या अधिक उद्देश्य के लिए हो सकता है:

  • आर्थिक स्थिरता
  • एक संतोषजनक नौकरी
  • शांति और स्वास्थ्य
  • किसी प्रियजन की भलाई
  • आध्यात्मिक विकास
  • विवाह
  • दिव्य कृपा और सुरक्षा
  • या कोई अन्य शुभ और सकारात्मक इच्छा

ध्यान रहे कि आपकी इच्छा सच्ची और सकारात्मक होनी चाहिए,  किसी भी प्रकार की हानि या नकारात्मकता से रहित।

  दैनिक पाठ का संकल्प

तय करें कि आप प्रतिदिन इस स्तोत्र/नामावली का कितनी बार पाठ करेंगे: 3, 5, 7, 11, 21 या उससे अधिक,  आपकी श्रद्धा और सामर्थ्य के अनुसार।

यदि आप किसी दिन पाठ करना भूल जाते हैं, तो आपकी साधना भंग हो जाती है, और आपको पहले दिन से पुनः आरंभ करना होगा। यह अनुशासन आपकी आध्यात्मिक दृढ़ता को मजबूत करता है।

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दूसरी विधि : भक्ति की सीमाओं से परे साधना

दूसरी विधि यह है कि आप इस स्तोत्र/नामावली का पाठ केवल भक्ति भाव से करें,  बिना किसी समयबद्ध संकल्प के। इस स्थिति में, हृदय ही मंदिर बन जाता है, और सच्चाई ही आपकी अर्पण होती है।

 साधना के फल किन बातों पर निर्भर करते हैं

आपकी साधना के परिणाम निम्नलिखित बातों पर निर्भर करते हैं:

  • प्रतिदिन के पाठ की संख्या
  • कुल साधना की अवधि (दिनों की संख्या)
  • आपकी एकाग्रता और भक्ति की गहराई

आप अपनी साधना की ऊर्जा को निम्नलिखित आध्यात्मिक अनुशासनों से और अधिक प्रभावशाली बना सकते हैं (ये अनिवार्य नहीं हैं, केवल अनुशंसित हैं):

  • मांसाहार से परहेज़
  • प्याज और लहसुन का त्याग
  • प्रतिदिन एक ही समय पर पाठ करना
  • इंद्रिय सुखों और ध्यान भटकाने वाली चीजों से दूरी

जितनी अधिक कठिन और केंद्रित आपकी साधना होगी, उतने ही गहरे और चमत्कारी होंगे उसके परिणाम।

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॥ श्रीगणेशाय नमः ॥
॥ श्रीभैरवाय नमः ॥


श्री गणेशजी को वंदन
श्री भैरव जी को नमन्
कार्य में सफलता की कामना
सभी विघ्न दूर हो जाएं

ईश्वर उवाच ।
बाटुकं कवचं दिव्यं श‍ृणु मत्प्राणवल्लभे ।
चण्डिकातन्त्रसर्वस्वं बटुकस्य विशेषतः ॥ ४॥


ईश्वर बोले: हे प्रिये,
इस दिव्य बटुक कवच को सुनो।
यह चण्डिका तंत्र का सार
विशेष रूप से बटुक के लिए है।

तत्र मन्त्राद्यक्षरं तु वासुदेवस्वरूपकम् ।
शङ्खवर्णद्वयो ब्रह्मा बटुकश्चन्द्रशेखरः ॥ ५॥


इसमें मंत्रों के सभी अक्षर
वासुदेव के समान स्वरूप हैं।
दो शंखवर्ण ब्रह्मा, बटुक
और चन्द्रशेखर इसमें शामिल हैं।

आपदुद्धारणो देवो भैरवः परिकीर्तितः ।
प्रवक्ष्यामि समासेन चतुर्वर्गप्रसिद्धये ॥ ६॥


भैरव को संकटों से उबारने वाले देव
के रूप में प्रसिद्ध किया गया है।
मैं तुम्हें संक्षेप में बताऊँगा,
धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष के लिए यह श्रेष्ठ है।

प्रणवः कामदं विद्या लज्जाबीजं च सिद्धिदम् ।
बटुकायेति विज्ञेयं महापातकनाशनम् ॥ ७॥


प्रणव मंत्र अभिलाषाओं को पूर्ण करने वाला,
विद्या और लज्जा बीज भी सफल सिद्धि देनेवाले हैं।
‘बटुकाय’ ऐसा जानो, यह महान पापों का नाश करता है।

आपदुद्धारणायेति त्वापदुद्धारणं नृणाम् ।
कुरुद्वयं महेशानि मोहने परिकीर्तितम् ॥ ८॥


आपद उद्धार करने वाले देव,
जो दोनों प्रकार के मोहमय हैं,
महेश का स्वरूप कहलाए,
सभी मनुष्यों के संकट हरने वाले।

बटुकाय महेशानि स्तम्भने परिकीर्तितम् ।
लज्जाबीजं तथा विद्यान्मुक्तिदं परिकीर्तितम् ॥ ९॥


महेशजी के रूप में बटुक हैं,
स्तम्भन और नियंत्रण के स्वरूप,
लज्जा बीज और विद्या भी,
मुक्तिदायक माने गए।

द्वाविंशत्यक्षरो मन्त्रः क्रमेण जगदीश्वरि

इस मंत्र में हैं बाईस अक्षर,
जिन्हें क्रमशः उच्चारित किया जाता है।
यह जगदीश्वर के लिए समर्पित है,
जो संपूर्ण जगत के अधिपति हैं।

॥ ॐ ह्रीं बटुकाय आपदुद्धारणाय कुरु कुरु बटुकाय ह्रीं ॥

इस मंत्र का जाप कवच से पहले और बाद में करें।
जाप की संख्या 11 या 21 बार हो सकती है।
यह आपदाओं से उद्धार का माध्यम है।
भगवान बटुक भैरव की कृपा के लिए।

Digital depiction of batuk bhairav bramha kavach hindi—a radiant child deity with crescent moon and third eye, encircled by glowing tridents and Sanskrit script, symbolizing divine protection, tantric power, and spiritual awakening.”
ॐ अस्य श्रीबटुकभैरवब्रह्मकवचस्य भैरव ऋषिः ।
अनुष्टुप् छन्दः । श्रीबटुकभैरवो देवता ।
मम श्रीबटुकभैरवप्रसादसिद्धयर्थे जपे विनियोगः ॥


यह श्रीबटुक भैरव ब्रह्म कवच है
जिसका ऋषि भैरव है।
छंद अनुष्टुप है और
देवता श्रीबटुकभैरव हैं।
यह जप मेरी श्रीबटुकभैरव प्रसन्नता के लिए है।

ॐ पातु नित्यं शिरसि पातु ह्रीं कण्ठदेशके ॥ १०॥
बटुकाय पातु नाभौ चापदुद्धारणाय च ॥

हरदम सिर पर सुरक्षा हो,
और गले के पास भी रक्षा हो।
बटुक की सुरक्षा नाभि में हो,
साथ ही आपदाओं से भी रक्षा हो।

कुरुद्वयं लिङ्गमूले त्वाधारे वटुकाय च ॥ ११॥
सर्वदा पातु ह्रीं बीजं बाह्वोर्युगलमेव च ॥

कुरु और द्युं के मूल में,
वटुक की उपस्थिति बनी रहे।
सदैव रक्षा करे ह्रीं बीज,
जो दोनों हाथों से लगी हो।

षडङ्गसहितो देवो नित्यं रक्षतु भैरवः ॥ १२॥
ॐ ह्रीं बटुकाय सततं सर्वाङ्गं मम सर्वदा ॥

षट्-अंगों सहित देव,
हमेशा भैरव रक्षा करे।
ॐ ह्रीं बटुक को निरंतर करें,
सब अंगों की समग्र रक्षा।

ॐ ह्रीं पादौ महाकालः पातु वीरासनो हृदि ॥ १३॥

ॐ ह्रीं के साथ भगवान महाकाल,
चरणों से सदैव रक्षा करें,
और वीरासन में
हमारे हृदय की रक्षा करें।

ॐ ह्रीं कालः शिरः पातु कण्ठदेशे तु भैरवः ।
गणराट् पातु जिह्वायामष्टाभिः शक्तिभिः सह ॥ १४॥


ॐ ह्रीं के साथ काल भैरव
सिर और गले की रक्षा करें।
गणों के राजा जिह्वा पर
आठ शक्तियों सहित रक्षा करें।

ॐ ह्रीं दण्डपाणिर्गुह्यमूले भैरवीसहितस्तथा ।
ॐ ह्रीं विश्वनाथः सदा पातु सर्वाङ्गं मम सर्वदः ॥ १५॥


ॐ ह्रीं के साथ दण्डपाणि,
गुप्त नाडियों के मूल में भैरवी भी हैं।
ॐ ह्रीं विश्वनाथ हमेशा
मेरे सारे शरीर की रक्षा करें।

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ॐ ह्रीं अन्नपूर्णा सदा पातु चांसौ रक्षतु चण्डिका ।
आसिताङ्गः शिरः पातु ललाटं रुरुभैरवः ॥ १६॥


ॐ ह्रीं के साथ अन्नपूर्णा
सदैव रक्षा करें।
चंडीका सुरक्षा करें,
आसितांग का सिर और ललाट।

ॐ ह्रीं चण्डभैरवः पातु वक्त्रं कण्ठं श्रीक्रोधभैरवः ।
उन्मत्तभैरवः पातु हृदयं मम सर्वदा ॥ १७॥


ॐ ह्रीं के साथ चण्ड भैरव
मुख और गले की रक्षा करें।
श्री क्रोधभैरव और उन्मत्तभैरव
सदैव मेरे हृदय की रक्षा करें।

ॐ ह्रीं नाभिदेशे कपाली च लिङ्गे भीषणभैरवः ।
संहारभैरवः पातु मूलाधारं च सर्वदा ॥ १८॥


ॐ ह्रीं के साथ
नाभि क्षेत्र में कपाली
भीषणभैरव की रक्षा हो।
संहारभैरव भी
मूलाधार (मूल स्थान) की रक्षा करें सदैव।

ॐ ह्रीं बाहुयुग्मं सदा पातु भैरवो मम केवलम् ।
हंसबीजं पातु हृदि सोऽहं रक्षतु पादयोः ॥ १९॥


ॐ ह्रीं के साथ जोड़ीदार हाथों की रक्षा करें,
सिर्फ मेरे लिए भैरव।
हंस बीज मेरे हृदय में रहे,
और वह मेरा पैर भी सुरक्षित करें।

ॐ ह्रीं प्राणापानौ समानं च उदानं व्यानमेव च ।
रक्षतु द्वारमूले च दशदिक्षु समन्ततः ॥ २०॥


ॐ ह्रीं के साथ प्राण और आपान
समान रूप से संचालित हों।
उदान और व्यान भी सुरक्षित रहें,
दश दिशाओं में द्वारों की सुरक्षा।

ॐ ह्रीं प्रणवं पातु सर्वाङ्गं लज्जाबीजं महाभये ।
इति श्रीब्रह्मकवचं भैरवस्य प्रकीर्तितम् ॥ २१॥


ॐ ह्रीं के साथ प्रणव
संपूर्ण शरीर की रक्षा करें।
लज्जा बीज मेरे भय दूर करे,
ऐसा कहा गया है यह ब्रह्म कवच।

चतुवर्गफलप्रदं नित्यं स्वयं देवप्रकाशितम् ।
यः पठेच्छृणुयान्नित्यं धारयेत्कवचोत्तमम् ॥ २२॥


यह कवच है जो चारों कर्मों के फल देता है,
स्वयं देव द्वारा प्रकाशित है हमेशा।
जो कोई इसे निरंतर पढ़े या सुने,
वह सर्वोत्तम कवच धारण करता है।

सदानन्दमयो भूत्वा लभते परमं पदम् ।
यः इदं कवचं देवि चिन्तयेन्मन्मुखोदितम् ॥ २३॥


जो सदानंदमय होकर,
यह कवच मन मुक्ति से पढ़ता है,
वह परम उच्च स्थान को प्राप्त करता है।

कोटिजन्मार्जितं पापं तस्य नश्यति तत्क्षणात् ।
जलमध्येऽग्निमध्ये वा दुर्ग्रहे शत्रुसङ्कटे ॥ २४॥


जिसके पाप हजार जन्मों से सहे,
वह क्षण भर में साफ हो जाता है।
जल या अग्नि में, दुर्ग में, या शत्रु के संकट में,
वह कवच अभेद्य बन जाता है।

कवचस्मरणाद्देवि सर्वत्र विजयी भवेत् ।
भक्तियुक्तेन मनसा कवचं पूजयेद्यदि ॥ २५॥


देवी, इसके स्मरण से तू
सभी स्थानों पर विजयी बनी।
जो भक्तिपूर्ण मन से
इस कवच की पूजा करता है।

कामतुल्यस्तु नारीणां रिपूणां च यमोपमः ।
तस्य पादाम्बुजद्वन्दं राज्ञां मुकुटभूषणम् ॥ २६॥


काम के समान है वह यम के विरोधी,
राजाओं के मुकुट और आभूषण के समान,
उसके दोनों पादाम्बुज
सम्मानित और आदर से पूजित।

तस्य भूतिं विलोक्यैव कुबेरोऽपि तिरस्कृतः ।
यस्य विज्ञानमात्रेण मन्त्रसिद्धिर्न संशयः ॥ २७॥


जिसके प्रभाव को देखकर
कुबेर भी तिरस्कृत हो जाता है,
जिसकी केवल विज्ञान से
मंत्र सिद्धि में कोई संशय नहीं।

इदं कवचमज्ञात्वा यो जपेद्बटुकं नरः ।
न चाप्नोति फलं तस्य परं नरकमाप्नुयात् ॥ २८॥


जो पुरुष इस कवच को न जाने
और बटुक का जप नहीं करता,
वह फल प्राप्त नहीं करता,
और नरकासन को प्राप्त होता है।

मन्वन्तरत्रयं स्थित्वा तिर्यग्योनिषु जायते ।
इह लोके महारोगी दारिद्र्येणातिपीडितः ॥ २९॥


तीन मन्वंतर तक रहता है,
चारों दिशाओं में जन्म लेता है,
यह लोक में बड़ा रोगी,
और अत्यंत दुखी धनहीन होता है।

शत्रूणां वशगो भूत्वा करपात्री भवेज्जडः ।
देयं पुत्राय शिष्याय शान्ताय प्रियवादिने ॥ ३०॥


वह जड़ है जो शत्रुओं का अधिपति हो,
कर-पात्री रूप में स्थित हो।
देय, पुत्र, शिष्य, शांत और प्रिय वादी बने।

कार्पण्यरहितायालं बटुकभक्तिरताय च ।
योऽपरागे प्रदाता वै तस्य स्यादतिसत्वरम् ॥ ३१॥


बटुकभक्ति से रहित,
और जो अन्य के प्रति द्वेष न रखे,
भक्त को शीघ्र फल देने वाला।

आयुर्विद्या यशो धर्मं बलं चैव न संशयः ।
इति ते कथितं देवि गोपनीयं स्वयोनिवत् ॥ ३२॥


आयु, विद्या, यश, धर्म और बल,
इनमें कोई संशय नहीं है।
ऐसा तुम्हें स्वयं उस देवी ने
जो गुप्त है, बताया है।

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