Glowing mandala above reflective water under a starry sky—symbolizing cosmic harmony and spiritual depth evoked by Sri Hari Stotra in Hindi.

Sri Hari Stotram In Hindi: श्री हरि स्तोत्रम्, भक्ति की अमृतवाणी”

श्री हरि स्तोत्र (this post is for sri hari stotra in hindi) एक दिव्य मंत्र है जो न केवल भक्ति को जाग्रत करता है, बल्कि मानसिक शांति और आत्मिक ऊर्जा भी प्रदान करता है। संस्कृत के पवित्र शब्दों में छिपी शक्ति जीवन के दुखों को हरती है और विष्णु की कृपा को आकर्षित करती है। हिंदी में इसका पाठ करना भावनात्मक रूप से और भी गहराई से जुड़ने का माध्यम बनता है।

मुख्य लाभ:

  • मानसिक शांति और भावनात्मक स्थिरता
  • नकारात्मक ऊर्जा से सुरक्षा
  • ध्यान और साधना में गहराई
  • आत्मिक शक्ति और विश्वास की वृद्धि
  • विष्णु कृपा का अनुभव और जीवन में संतुलन

महत्वपूर्ण निर्देश

इस स्तोत्र/ नामावली  का लाभ कैसे प्राप्त करें

इस स्तोत्र/नामावली की कृपा को पूर्ण रूप से प्राप्त करने के लिए दो विधियाँ हैं:

पहली विधि: संकल्प के साथ साधना

इस साधना की शुरुआत एक संकल्प से होती है , एक सच्चे हृदय से लिया गया संकल्प या उद्देश्य। तय करें कि आप कितने दिनों तक इस स्तोत्र का पाठ नियमित रूप से करेंगे: 7, 9, 11, 21, 40 या कोई भी संख्या जो आपके लक्ष्य के साथ आध्यात्मिक रूप से जुड़ी हो।

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आपका संकल्प निम्नलिखित में से किसी एक या अधिक उद्देश्य के लिए हो सकता है:

  • आर्थिक स्थिरता
  • एक संतोषजनक नौकरी
  • शांति और स्वास्थ्य
  • किसी प्रियजन की भलाई
  • आध्यात्मिक विकास
  • विवाह
  • दिव्य कृपा और सुरक्षा
  • या कोई अन्य शुभ और सकारात्मक इच्छा

ध्यान रहे कि आपकी इच्छा सच्ची और सकारात्मक होनी चाहिए,  किसी भी प्रकार की हानि या नकारात्मकता से रहित।

  दैनिक पाठ का संकल्प

तय करें कि आप प्रतिदिन इस स्तोत्र/नामावली का कितनी बार पाठ करेंगे: 3, 5, 7, 11, 21 या उससे अधिक,  आपकी श्रद्धा और सामर्थ्य के अनुसार।

यदि आप किसी दिन पाठ करना भूल जाते हैं, तो आपकी साधना भंग हो जाती है, और आपको पहले दिन से पुनः आरंभ करना होगा। यह अनुशासन आपकी आध्यात्मिक दृढ़ता को मजबूत करता है।

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दूसरी विधि : भक्ति की सीमाओं से परे साधना

दूसरी विधि यह है कि आप इस स्तोत्र/नामावली का पाठ केवल भक्ति भाव से करें,  बिना किसी समयबद्ध संकल्प के। इस स्थिति में, हृदय ही मंदिर बन जाता है, और सच्चाई ही आपकी अर्पण होती है।

 साधना के फल किन बातों पर निर्भर करते हैं

आपकी साधना के परिणाम निम्नलिखित बातों पर निर्भर करते हैं:

  • प्रतिदिन के पाठ की संख्या
  • कुल साधना की अवधि (दिनों की संख्या)
  • आपकी एकाग्रता और भक्ति की गहराई

आप अपनी साधना की ऊर्जा को निम्नलिखित आध्यात्मिक अनुशासनों से और अधिक प्रभावशाली बना सकते हैं (ये अनिवार्य नहीं हैं, केवल अनुशंसित हैं):

  • मांसाहार से परहेज़
  • प्याज और लहसुन का त्याग
  • प्रतिदिन एक ही समय पर पाठ करना
  • इंद्रिय सुखों और ध्यान भटकाने वाली चीजों से दूरी

जितनी अधिक कठिन और केंद्रित आपकी साधना होगी, उतने ही गहरे और चमत्कारी होंगे उसके परिणाम।

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Surreal golden lotus blooming under a starry sky with ascending blue light—symbolizing spiritual awakening and divine energy invoked by Sri Hari Stotra in hindi.
जगज्जालपालं चलत्कण्ठमालं शरच्चन्द्रभालं महादैत्यकालं
नभोनीलकायं दुरावारमायं सुपद्मासहायम् भजेऽहं भजेऽहं॥1॥

जो समस्त जगत के रक्षक हैं,
गले में मणियों की माला हिल रही है,
मस्तक उनका शरद ऋतु के चंद्रमा के समान तेजस्वी है,
और वे महादैत्यों के संहारक हैं।
उनका शरीर नीले आकाश जैसा है,
उनकी माया (भ्रम) अजेय है,
और वे देवी लक्ष्मी के सहचर हैं।
मैं उनका भजन करता हूं, बार-बार।
सदाम्भोधिवासं गलत्पुष्पहासं जगत्सन्निवासं शतादित्यभासं
गदाचक्रशस्त्रं लसत्पीतवस्त्रं हसच्चारुवक्त्रं भजेऽहं भजेऽहं॥2॥

जो सदैव समुद्र में निवास करते हैं,
जिनकी मुस्कान खिले हुए फूलों सी है,
जो सम्पूर्ण जगत में विराजमान हैं,
जो सौ सूर्यों समान प्रकाशमान हैं।
जिनके पास गदा और चक्र के रूप में अस्त्र हैं,
जो पीले वस्त्र धारण करते हैं,
जिनके सुंदर मुख पर प्यारी मुस्कान है,
उन भगवान विष्णु का मैं बार-बार भजन करता हूँ।
रमाकण्ठहारं श्रुतिव्रातसारं जलान्तर्विहारं धराभारहारं
चिदानन्दरूपं मनोज्ञस्वरूपं ध्रुतानेकरूपं भजेऽहं भजेऽहं॥3॥

जो लाल गले की माला पहनते हैं,
जो शास्त्रों की प्रतिज्ञा का सार समाते हैं,
जो अंतरंगों की यात्रा करते हैं,
और जो धरती का भार көтерते हैं।
जो चैतन्य और आनंद के स्वरूप हैं,
जिनकी आवाज आनंददायक है,
और जो अनेक रूप धारण करते हैं,
उनकी मैं भक्ति करता हूँ, बार-बार।
जराजन्महीनं परानन्दपीनं समाधानलीनं सदैवानवीनं
जगज्जन्महेतुं सुरानीककेतुं त्रिलोकैकसेतुं भजेऽहं भजेऽहं॥4॥

जो बिना किसी जन्म का है,
जो परम आनंद को पीते हैं,
जो समाधान में लीन रहते हैं,
जो हमेशा नवीन रहते हैं,
जो जगत के जन्म का कारण है,
जो देवताओं के सैन्य का नेता है,
जो त्रिलोक (तीनों लोक) का ऐकक सेतु है,
उनकी मैं भक्ति करता हूँ, बार-बार।
कृताम्नायगानं खगाधीशयानं विमुक्तेर्निदानं हरारातिमानं
स्वभक्तानुकूलं जगद्व्रुक्षमूलं निरस्तार्तशूलं भजेऽहं भजेऽहं॥5॥

जो वेदों के गायक हैं,
जो पक्षियों के राजा गरुड़ की सवारी करते हैं,
जो हमें मुक्ति का कारण देते हैं,
जो शत्रुओं के अहंकार को हाराते हैं।
जो अपने भक्तों के अनुकूल हैं,
जो जगत के वृक्ष के मूल हैं,
और जो सभी दुखों को दूर करते हैं,
उनकी मैं बार-बार भक्ति करता हूँ।
समस्तामरेशं द्विरेफाभकेशं जगद्विम्बलेशं ह्रुदाकाशदेशं
सदा दिव्यदेहं विमुक्ताखिलेहं सुवैकुण्ठगेहं भजेऽहं भजेऽहं॥6॥

जो सभी अमरों के स्वामी हैं,
जो भौंरे जैसा बालों वाले हैं,
जो जगत का सबसे छोटा अंश हैं,
जिनकी आत्मा आकाश के समान विशाल है,
जिनका शरीर सदैव दिव्य है,
जो पूरे जगत से मुक्त हैं,
और जो वैकुंठ में विराजमान हैं।
मैं उनका बार-बार भजन करता हूँ।
सुरालिबलिष्ठं त्रिलोकीवरिष्ठं गुरूणां गरिष्ठं स्वरूपैकनिष्ठं
सदा युद्धधीरं महावीरवीरं महाम्भोधितीरं भजेऽहं भजेऽहं॥7॥

जो देवताओं में सबसे बलवान है,
जो तीनों लोकों में सर्वश्रेष्ठ है,
जो गुरुओं में सबसे महान है,
जो अपने स्वरूप में सदा अडिग है,
जो हमेशा युद्ध में धीरज रखता है,
जो महान वीरों से भी वीर है,
जो महासागर के किनारे विराजमान है,
उनकी मैं बार-बार भक्ति करता हूँ।
रमावामभागं तलानग्रनागं कृताधीनयागं गतारागरागं
मुनीन्द्रैः सुगीतं सुरैः संपरीतं गुणौधैरतीतं भजेऽहं भजेऽहं॥8॥

जो रमणीय भाग में विराजमान हैं,
जो तल और नग के ऊपर हैं,
जो कृतज्ञ वापी के अधीन हैं,
जो अग्नि की गति से तेजस्वी हैं।
जिन्हें ऋषि-मुनि और देवता सुंदर संगीत से पूजते हैं,
जो गुणों के सागर से परे हैं,
उनकी मैं बार-बार भक्ति करता हूँ।

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