Celestial lion roaring amidst cosmic flames and stars, symbolizing divine strength and protection evoked through Argala Stotram in Hindi.

श्री अर्गला स्तोत्र: माँ दुर्गा की कृपा पाने का रहस्य

श्री अर्गला स्तोत्र

श्री अर्गला स्तोत्रम् दुर्गा सप्तशती का एक अत्यंत महत्वपूर्ण भाग है, जो मार्कण्डेय पुराण में वर्णित है। यह स्तोत्र (argala stotra in hindi) देवी कवच के बाद और कीलक स्तोत्र से पहले पढ़ा जाता है। इसे “सप्तशती की कुंजी” कहा जाता है, क्योंकि यह माँ दुर्गा की कृपा को जागृत करने का माध्यम है। इसमें देवी के विविध रूपों की स्तुति की गई है जो भक्त को विजय, रक्षा और मनोकामना पूर्ति प्रदान करती है।

पाठ के लाभ:

  • भय, शत्रु, रोग और दरिद्रता से रक्षा
  • रूप, यश, विजय और आत्मबल की प्राप्ति
  • दुर्गा सप्तशती के पाठ को पूर्ण फल देने वाला

इस स्तोत्र/ नामावली  का लाभ कैसे प्राप्त करें

इस स्तोत्र/नामावली की कृपा को पूर्ण रूप से प्राप्त करने के लिए दो विधियाँ हैं:

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पहली विधि: संकल्प के साथ साधना

इस साधना की शुरुआत एक संकल्प से होती है , एक सच्चे हृदय से लिया गया संकल्प या उद्देश्य। तय करें कि आप कितने दिनों तक इस स्तोत्र का पाठ नियमित रूप से करेंगे: 7, 9, 11, 21, 40 या कोई भी संख्या जो आपके लक्ष्य के साथ आध्यात्मिक रूप से जुड़ी हो।

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आपका संकल्प निम्नलिखित में से किसी एक या अधिक उद्देश्य के लिए हो सकता है:

  • आर्थिक स्थिरता
  • एक संतोषजनक नौकरी
  • शांति और स्वास्थ्य
  • किसी प्रियजन की भलाई
  • आध्यात्मिक विकास
  • विवाह
  • दिव्य कृपा और सुरक्षा
  • या कोई अन्य शुभ और सकारात्मक इच्छा

ध्यान रहे कि आपकी इच्छा सच्ची और सकारात्मक होनी चाहिए,  किसी भी प्रकार की हानि या नकारात्मकता से रहित।

तय करें कि आप प्रतिदिन इस स्तोत्र/नामावली का कितनी बार पाठ करेंगे: 3, 5, 7, 11, 21 या उससे अधिक,  आपकी श्रद्धा और सामर्थ्य के अनुसार।

यदि आप किसी दिन पाठ करना भूल जाते हैं, तो आपकी साधना भंग हो जाती है, और आपको पहले दिन से पुनः आरंभ करना होगा। यह अनुशासन आपकी आध्यात्मिक दृढ़ता को मजबूत करता है।

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 दूसरी विधि : भक्ति की सीमाओं से परे साधना

दूसरी विधि यह है कि आप इस स्तोत्र/नामावली का पाठ केवल भक्ति भाव से करें,  बिना किसी समयबद्ध संकल्प के। इस स्थिति में, हृदय ही मंदिर बन जाता है, और सच्चाई ही आपकी अर्पण होती है।

 साधना के फल किन बातों पर निर्भर करते हैं

आपकी साधना के परिणाम निम्नलिखित बातों पर निर्भर करते हैं:

  • प्रतिदिन के पाठ की संख्या
  • कुल साधना की अवधि (दिनों की संख्या)
  • आपकी एकाग्रता और भक्ति की गहराई

आप अपनी साधना की ऊर्जा को निम्नलिखित आध्यात्मिक अनुशासनों से और अधिक प्रभावशाली बना सकते हैं (ये अनिवार्य नहीं हैं, केवल अनुशंसित हैं):

  • मांसाहार से परहेज़
  • प्याज और लहसुन का त्याग
  • प्रतिदिन एक ही समय पर पाठ करना
  • इंद्रिय सुखों और ध्यान भटकाने वाली चीजों से दूरी

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जितनी अधिक कठिन और केंद्रित आपकी साधना होगी, उतने ही गहरे और चमत्कारी होंगे उसके परिणाम।

अथ अर्गलास्तोत्रम्
ॐ अस्य श्रीअर्गलास्तोत्रमन्त्रस्य विष्णुरृषिः, अनुष्टुप् छन्दः,
श्रीमहालक्ष्मीर्देवता, श्रीजगदम्बाप्रीतये सप्तशतिपाठाङ्गत्वेन
जपे विनियोगः ।

अभी अर्गलास्तोत्र का प्रारम्भ है।
इस स्तोत्र का ऋषि विष्णु माने जाते हैं।
छन्द अनुष्टुप है।
देवता श्री महालक्ष्मी हैं तथा
श्री जगदम्बा की प्रसन्नता हेतु,
सप्तशती पाठ का अंगरूप में
जप करने का विधान है।

श्री अर्गला स्तोत्र आरंभ होता है

Golden cosmic gateway radiating divine energy and light, symbolizing spiritual awakening and transition through the sacred chant of Argala Stotra in hindi.
ॐ नमश्चण्डिकायै ।
ॐ जय त्वं देवि चामुण्डे जय भूतापहारिणि ।
जय सर्वगते देवि कालरात्रि नमोऽस्तु ते ॥ १॥

चण्डिकायै देवी को नमस्कार है।
हे चामुण्डा देवी! तुम्हें विजय हो।
हे भूतो के दुःख दूर करनेवाली!
सर्वत्र व्याप्त देवी कालरात्रि,
आपको पुनः नमस्कार है॥

जयन्ती मङ्गला काली भद्रकाली कपालिनी ।
दुर्गा शिवा क्षमा धात्री स्वाहा स्वधा नमोऽस्तु ते ॥ २॥

जयन्ती, मंगलमयी काली,
भद्रकाली और कपालिनी।
दुर्गा, शिवा, क्षमाशील धात्री,
स्वाहा और स्वधा स्वरूपिणी,
आपको मेरा नमस्कार है॥

मधुकैटभविध्वंसि विधातृवरदे नमः ।
रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि ॥ ३॥

हे मधु और कैटभ का संहार करनेवाली।
सृष्टिकर्ता को वरदान देनेवाली देवी।
आपको नमस्कार है।
मुझे सुन्दर रूप दीजिए, विजय दीजिए,
यश प्रदान कीजिए और शत्रुओं का नाश कीजिए॥

महिषासुरनिर्नाशि भक्तानां सुखदे नमः ।
रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि ॥ ४॥

हे महिषासुर का संहार करनेवाली।
भक्तों को सुख देनेवाली देवी।
आपको बारम्बार नमस्कार है।
मुझे सुन्दर रूप दीजिए, विजय दीजिए,
यश दीजिए और शत्रुओं का नाश कीजिए॥
धूम्रनेत्रवधे देवि धर्मकामार्थदायिनि ।
रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि ॥ ५॥

हे धूम्रनेत्र का वध करनेवाली देवी।
धर्म, काम और अर्थ प्रदान करनेवाली।
आपको बारम्बार नमस्कार है।
मुझे रूप दीजिए, विजय दीजिए,
यश दीजिए और शत्रुओं का नाश कीजिए॥

रक्तबीजवधे देवि चण्डमुण्डविनाशिनि ।
रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि ॥ ६॥

हे रक्तबीज का संहार करनेवाली देवी।
चण्ड और मुण्ड का विनाश करनेवाली।
आपको पुनः नमस्कार है।
मुझे रूप दीजिए, विजय दीजिए,
यश दीजिए और शत्रुओं का नाश कीजिए॥
निशुम्भशुम्भनिर्नाशि त्रिलोक्यशुभदे नमः ।
रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि ॥ ७॥

हे शुम्भ और निशुम्भ का संहार करनेवाली देवी।
त्रिलोक में मंगल प्रदान करनेवाली।
आपको बारम्बार नमस्कार है।
मुझे रूप दीजिए, विजय दीजिए,
यश दीजिए और शत्रुओं का नाश कीजिए॥

वन्दिताङ्घ्रियुगे देवि सर्वसौभाग्यदायिनि ।
रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि ॥ ८॥

हे देवी, जिनके प्रसन्न चरण युगल का वंदन किया जाता है।
सर्व प्रकार के सौभाग्य का दान करनेवाली।
आपको नमस्कार है।
मुझे रूप दीजिए, विजय दीजिए,
यश दीजिए और शत्रुओं का नाश कीजिए॥
अचिन्त्यरूपचरिते सर्वशत्रुविनाशिनि ।
रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि ॥ ९॥

हे देवी, जिनका रूप और चरित्र अचिन्त्य है।
जो सभी शत्रुओं का विनाश करनेवाली हैं।
आपको बारम्बार नमस्कार है।
मुझे रूप दीजिए, विजय दीजिए,
यश दीजिए और शत्रुओं का नाश कीजिए॥

नतेभ्यः सर्वदा भक्त्या चापर्णे दुरितापहे ।
रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि ॥ १०॥

हे चापर्णे देवी, जो सदैव भक्तों की पूजा से नतमस्तक होती हैं।
जो सभी पाप-दुरितों को मिटानेवाली हैं।
आपको नमस्कार है।
मुझे रूप दीजिए, विजय दीजिए,
यश दीजिए और शत्रुओं का नाश कीजिए॥
स्तुवद्भ्यो भक्तिपूर्वं त्वां चण्डिके व्याधिनाशिनि ।
रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि ॥ ११॥

हे चण्डिके, जो भक्तों द्वारा भक्ति पूर्वक स्तुति की जाती हैं।
रोग और व्याधियों का विनाश करनेवाली देवी।
आपको बारम्बार नमस्कार है।
मुझे रूप दीजिए, विजय दीजिए,
यश दीजिए और शत्रुओं का नाश कीजिए॥

चण्डिके सततं युद्धे जयन्ति पापनाशिनि ।
रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि ॥ १२॥

हे चण्डिके, जो सदा युद्ध में विजय प्राप्त करती हैं।
पापों का विनाश करनेवाली देवी।
आपको नमस्कार है।
मुझे रूप दीजिए, विजय दीजिए,
यश दीजिए और शत्रुओं का नाश कीजिए॥
देहि सौभाग्यमारोग्यं देहि देवि परं सुखम् ।
रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि ॥ १३॥

हे देवी, मुझे सौभाग्य दीजिए।
आरोग्य और परम सुख प्रदान कीजिए।
आपको बारम्बार नमस्कार है।
मुझे रूप दीजिए, विजय दीजिए,
यश दीजिए और शत्रुओं का नाश कीजिए॥

विधेहि देवि कल्याणं विधेहि विपुलां श्रियम् ।
रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि ॥ १४॥

हे देवी, मुझे कल्याण प्रदान कीजिए।
विपुल और स्थायी लक्ष्मी का दान कीजिए।
आपको नमस्कार है।
मुझे रूप दीजिए, विजय दीजिए,
यश दीजिए और शत्रुओं का नाश कीजिए॥
विधेहि द्विषतां नाशं विधेहि बलमुच्चकैः ।
रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि ॥ १५॥

हे देवी, मेरे शत्रुओं का नाश कीजिए।
और मुझे उच्च कोटि का बल प्रदान कीजिए।
आपको बारम्बार नमस्कार है।
मुझे रूप दीजिए, विजय दीजिए,
यश दीजिए और शत्रुओं का नाश कीजिए॥

सुरासुरशिरोरत्ननिघृष्टचरणेऽम्बिके ।
रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि ॥ १६॥

हे अम्बिके, जिनके चरण देवों और दैत्यों के मस्तक-रत्नों से स्पर्शित होते हैं।
आप सृष्टि की अधिष्ठात्री हैं।
आपको नमस्कार है।
मुझे रूप दीजिए, विजय दीजिए,
यश दीजिए और शत्रुओं का नाश कीजिए॥
विद्यावन्तं यशस्वन्तं लक्ष्मीवन्तञ्च मां कुरु ।
रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि ॥ १७॥

हे देवी, मुझे विद्या से सम्पन्न कीजिए,
यशस्वी और लक्ष्मी से युक्त कीजिए।
आपको नमस्कार है।
मुझे रूप दीजिए, विजय दीजिए,
यश दीजिए और शत्रुओं का नाश कीजिए॥

देवि प्रचण्डदोर्दण्डदैत्यदर्पनिषूदिनि ।
रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि ॥ १८॥

हे देवी, जिनके प्रचण्ड भुजदण्ड
दैत्य और असुरों के अहंकार को नष्ट करते हैं।
आपको बारम्बार नमस्कार है।
मुझे रूप दीजिए, विजय दीजिए,
यश दीजिए और शत्रुओं का नाश कीजिए॥
प्रचण्डदैत्यदर्पघ्ने चण्डिके प्रणताय मे ।
रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि ॥ १९॥

हे चण्डिके, जो प्रचण्ड दैत्यों का अहंकार नष्ट करती हैं।
आपको प्रणाम करनेवाले मुझे आश्रय दीजिए।
आपको नमस्कार है।
मुझे रूप दीजिए, विजय दीजिए,
यश दीजिए और शत्रुओं का नाश कीजिए॥

चतुर्भुजे चतुर्वक्त्रसंस्तुते परमेश्वरि ।
रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि ॥ २०॥

हे परमेश्वरि, जिनके चार भुजाएँ और चार मुख हैं।
जो सदा महिमामंडित होकर स्तुति की जाती हैं।
आपको बारम्बार नमस्कार है।
मुझे रूप दीजिए, विजय दीजिए,
यश दीजिए और शत्रुओं का नाश कीजिए॥
कृष्णेन संस्तुते देवि शश्वद्भक्त्या सदाम्बिके ।
रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि ॥ २१॥

हे सदाम्बिके, जिन्हें भगवान कृष्ण
सदैव भक्ति भाव से स्तुति करते हैं।
आपको मेरा बारम्बार नमस्कार है।
मुझे रूप दीजिए, विजय दीजिए,
यश दीजिए और शत्रुओं का नाश कीजिए॥

हिमाचलसुतानाथसंस्तुते परमेश्वरि ।
रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि ॥ २२॥

हे परमेश्वरि, जिन्हें हिमाचल-पुत्री पार्वती के
स्वामी भगवान शिव द्वारा स्तुति की गई है।
आपको नमस्कार है।
मुझे रूप दीजिए, विजय दीजिए,
यश दीजिए और शत्रुओं का नाश कीजिए॥
इन्द्राणीपतिसद्भावपूजिते परमेश्वरि ।
रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि ॥ २३॥

हे परमेश्वरि, जिनकी पूजा
स्वयं इन्द्राणीपति इन्द्रभाव से करते हैं।
आपको बारम्बार नमस्कार है।
मुझे रूप दीजिए, विजय दीजिए,
यश दीजिए और शत्रुओं का नाश कीजिए॥

देवि भक्तजनोद्दामदत्तानन्दोदयेऽम्बिके ।
रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि ॥ २४॥

हे अंबिके देवी, जो भक्तों को
अत्यंत आनंद प्रदान करती हैं।
आप भक्तों के जीवन में मंगल का उदय लाती हैं।
मुझे रूप दीजिए, विजय दीजिए,
यश दीजिए और शत्रुओं का नाश कीजिए॥
भार्यां मनोरमां देहि मनोवृत्तानुसारिणीम् ।
रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि ॥ २५॥

हे देवी, मुझे ऐसी पत्नी दीजिए
जो मनोरम और चित्त को भानेवाली हो।
जो मेरे मनोवृत्तियों का अनुसरण करे।
मुझे रूप दीजिए, विजय दीजिए,
यश दीजिए और शत्रुओं का नाश कीजिए॥

तारिणि दुर्गसंसारसागरस्याचलोद्भवे ।
रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि ॥ २६॥

हे अचलात्मजा पार्वती,
दुर्गम संसार-सागर से तारनेवाली देवी।
आपको बारम्बार नमस्कार है।
मुझे रूप दीजिए, विजय दीजिए,
यश दीजिए और शत्रुओं का नाश कीजिए॥
इदं स्तोत्रं पठित्वा तु महास्तोत्रं पठेन्नरः ।
सप्तशतीं समाराध्य वरमाप्नोति दुर्लभम् ॥ २७॥

जो मनुष्य इस स्तोत्र का पाठ करने के बाद
महास्तोत्र अर्थात् सप्तशती का पाठ करता है,
वह देवी की आराधना से
दुर्लभ वर को प्राप्त करता है॥

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