विष्णु पंचायुध स्तोत्रम्
विष्णु पंचायुध स्तोत्रम् (Vishnu Panchayudha Stotram in hindi)भगवान विष्णु के पाँच दिव्य आयुधों — सुदर्शन चक्र, पाञ्चजन्य शंख, कौमोदकी गदा, नंदक खड्ग, और शारंग धनुष — की स्तुति है। यह स्तोत्र भगवान के रक्षक रूप को दर्शाता है, जो अधर्म का नाश कर भक्तों को सुरक्षा प्रदान करते हैं।
पाठ के लाभ:
- भय, दुःख और पापों का नाश होता है
- युद्ध, जल, अग्नि या शत्रु के बीच भी सुरक्षा मिलती है
- जीवन में सुख, शांति और समृद्धि आती है
- नकारात्मक शक्तियों से रक्षा होती है
महत्वपूर्ण निर्देश
इस स्तोत्र/ नामावली का लाभ कैसे प्राप्त करें
इस स्तोत्र/नामावली की कृपा को पूर्ण रूप से प्राप्त करने के लिए दो विधियाँ हैं:
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पहली विधि: संकल्प के साथ साधना
इस साधना की शुरुआत एक संकल्प से होती है , एक सच्चे हृदय से लिया गया संकल्प या उद्देश्य। तय करें कि आप कितने दिनों तक इस स्तोत्र का पाठ नियमित रूप से करेंगे: 7, 9, 11, 21, 40 या कोई भी संख्या जो आपके लक्ष्य के साथ आध्यात्मिक रूप से जुड़ी हो।
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आपका संकल्प निम्नलिखित में से किसी एक या अधिक उद्देश्य के लिए हो सकता है:
- आर्थिक स्थिरता
- एक संतोषजनक नौकरी
- शांति और स्वास्थ्य
- किसी प्रियजन की भलाई
- आध्यात्मिक विकास
- विवाह
- दिव्य कृपा और सुरक्षा
- या कोई अन्य शुभ और सकारात्मक इच्छा
ध्यान रहे कि आपकी इच्छा सच्ची और सकारात्मक होनी चाहिए, किसी भी प्रकार की हानि या नकारात्मकता से रहित।
दैनिक पाठ का संकल्प
तय करें कि आप प्रतिदिन इस स्तोत्र/नामावली का कितनी बार पाठ करेंगे: 3, 5, 7, 11, 21 या उससे अधिक, आपकी श्रद्धा और सामर्थ्य के अनुसार। यदि आप किसी दिन पाठ करना भूल जाते हैं, तो आपकी साधना भंग हो जाती है, और आपको पहले दिन से पुनः आरंभ करना होगा। यह अनुशासन आपकी आध्यात्मिक दृढ़ता को मजबूत करता है।
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दूसरी विधि : भक्ति की सीमाओं से परे साधना
दूसरी विधि यह है कि आप इस स्तोत्र/नामावली का पाठ केवल भक्ति भाव से करें, बिना किसी समयबद्ध संकल्प के। इस स्थिति में, हृदय ही मंदिर बन जाता है, और सच्चाई ही आपकी अर्पण होती है।
साधना के फल किन बातों पर निर्भर करते हैं
आपकी साधना के परिणाम निम्नलिखित बातों पर निर्भर करते हैं:
- प्रतिदिन के पाठ की संख्या
- कुल साधना की अवधि (दिनों की संख्या)
- आपकी एकाग्रता और भक्ति की गहराई
आप अपनी साधना की ऊर्जा को निम्नलिखित आध्यात्मिक अनुशासनों से और अधिक प्रभावशाली बना सकते हैं (ये अनिवार्य नहीं हैं, केवल अनुशंसित हैं):
- मांसाहार से परहेज़
- प्याज और लहसुन का त्याग
- प्रतिदिन एक ही समय पर पाठ करना
- इंद्रिय सुखों और ध्यान भटकाने वाली चीजों से दूरी
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जितनी अधिक कठिन और केंद्रित आपकी साधना होगी, उतने ही गहरे और चमत्कारी होंगे उसके परिणाम।
विष्णु पंचायुध स्तोत्रम् आरंभ होता है

सुरद्विषां प्राणविनाशि विष्णोश्चक्रं सदाऽहं शरणं प्रपद्ये ॥ १॥
जो सहस्रार अग्नि समान प्रखर है,
जिसका तेज करोड़ों सूर्यों के बराबर है,
देवद्वेषियों का प्राण हर लेनेवाला,
उस विष्णु का चक्र मैं शरण लेता हूँ।
तं पाञ्चजन्यं शशिकोटिशुभ्रं शङ्खं सदाऽहं शरणं प्रपद्ये ॥ २॥
जो विष्णु के मुख से निकली वायु से भरा है,
जिसकी ध्वनि दैत्यों के अभिमान को नष्ट करती है,
जो करोड़ चंद्रमाओं की उज्ज्वलता जैसा श्वेत है,
उस शंख पाञ्चजन्य की मैं शरण लेता हूँ।
वैकुण्ठवामाग्रकराभिमृष्टां गदां सदाऽहं शरणं प्रपद्ये ॥ ३॥
जो सुनहरी आभा से चमकती है,
जिसकी शक्ति मेरु पर्वत के समान स्थिर है,
जो दैत्य कुल का नाश करनेवाली है,
उस वैकुण्ठनाथ की गदा की मैं शरण लेता हूँ।
तं नन्दकं नाम हरेः प्रदीप्तं खड्गं सदाऽहं शरणं प्रपद्ये ॥ ४॥
जो राक्षसों और असुरों के कठोर एवं उग्र गले को काटते हुए,
खून से भीगे हुए धाराओं से सदा बहते हुए,
विष्णु के नन्दक नाम के प्रदीप्त तलवार को,
मैं शरण लेता हूँ।
भवन्ति दैत्याशनिबाणवल्लिः शार्ङ्गं सदाऽहं शरणं प्रपद्ये ॥ ५॥
जिसके ज्ञानिनाद और श्रवण से,
सुरों के मन भयमुक्त और मुक्त हो जाते हैं,
जो दैत्य विनाशक तनु बाणों की बेल है,
उस शार्ङ्ग की मैं सदा शरण लेता हूँ।
समस्तदुःखानि भयानि सद्यः पापानि नश्यन्ति सुखानि सन्ति ॥ ६॥
जो हरि के पाँच महान अस्त्रों स्तुति का,
रोज सुबह पाठ करे,
उसके सारे दुःख और भय दूर हो जाते हैं,
पाप नष्ट होते हैं एवं सुख होता है।
इदं पठन् स्तोत्रमनाकुलात्मा सुखी भवेत्तत्कृतसर्वरक्षः ॥ ७॥
जंगल में, शत्रु, जल और अग्नि के बीच,
अचानक दुर्घटनाओं और बड़े खतरों में,
जो यह स्तोत्र पढ़े, उसका मन अशांत न हो,
वह सुखी होता है और सभी प्रकार की रक्षा पाता है।
पीताम्बरं कौस्तुभवत्सलाञ्छितम् ।
श्रिया समेतोज्ज्वलशोभिताङ्गं
विष्णुं सदाऽहं शरणं प्रपद्ये ॥ ८॥
जो चक्र, शंख, गदा और खड्ग धारण करता है,
पीताम्बर और कौस्तुभ मणि से अलंकृत है,
जो लक्ष्मी सहित तेजोमय और सुंदर है,
उस विष्णु की मैं सदा शरण लेता हूँ।